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Friday, July 27, 2018

महान क्रिकेटर... कप्तान... वर्ल्ड कप चैंपियन...प्लेबॉय...और अब वज़ीर-ए-आज़म?

Imran-Khan11111इमरान हमेशा जीतने के लिए जी-जान से कोशिश करते दिखाई दिए. चाहे क्रिकेट मैदान हो या राजनीति का मैदान. जीतने के लिए उन्होंने जो भी जरूरी था, वो किया. लेकिन क्रिकेट या राजनीति के भ्रष्टाचार से उन्होंने दूरी बनाकर रखी
(शैलेश चतुर्वेदी)

जितने पाकिस्तानी क्रिकेटर 80 के दशक में खेले हैं, उनके पास इमरान खान की तमाम कहानियां होती हैं. एक शब्द हर जगह कॉमन है, वो है भरोसा या आत्मविश्वास या पॉजिटिव रवैया. वसीम अकरम हों या अब्दुल कादिर या वकार यूनुस, हर कोई यही बताएगा कि इमरान आसपास हैं, तो आप नेगेटिव हो ही नहीं सकते. खुद पर इस कदर भरोसा शायद ही किसी और पर्सनैलिटी में नजर आएगा.

पिछले दिनों संजय मांजरेकर की एक किताब आई थी- इम्परफैक्ट. इसमें उन्होंने रमीज राजा के हवाले से लिखा है कि उस दौर के ड्रेसिंग रूम में नेगेटिव शब्द जैसा सुना ही नहीं गया था. उनके एक-दो किस्से का जिक्र है. जैसे एक बैट्समैन ने इमरान के पास से शॉट खेला. इमरान के क्रिकेट करियर के आखिरी दिनों की बात है. वकार यूनुस गेंदबाज थे. इमरान को लंबी दौड़ लगानी पड़ी. उन्होंने वकार से पूछा कि ये क्या था. वकार ने जवाब दिया कि इनस्विंग की कोशिश थी. इस पर इमरान बोले- बॉल करने से पहले मुझे बताना तो चाहिए था!

इसी तरह एक गेंदबाज के बारे में कहा जाता है कि वो बॉलिंग मार्क पर रुक गया. जब इमरान ने पूछा कि बॉल क्यों नहीं करता, तो जवाब आया कि आपने बताया नहीं कि क्या बॉल करनी है. किसी कप्तान का इस कदर असर और किसी का कप्तान पर इतना ज्यादा आश्रित होना शायद ही पहले सुना गया हो.
वसीम अकरम ने अपने एक इंटरव्यू में बड़ी दिलचस्प जानकारी दी थी. वसीम के करियर की शुरुआत थी. उन्हें इमरान ने सीधे पाकिस्तान टीम का हिस्सा बना लिया था. न्यूजीलैंड दौरा था. वसीम ने बॉलिंग शुरू की. कुछ देर बाद इमरान का निर्देश आया- यॉर्कर डाल. वसीम अकरम कुछ नहीं बोले. बॉलिंग करते रहे. इमरान ने डांटकर पूछा-यॉर्कर क्यों नहीं डालता? इस बार उन्होंने बड़ी हिम्मत करके इमरान को बताया- मुझे मालूम नहीं यॉर्कर के बारे में. लंच हुआ. पूरी टीम ड्रेसिंग रूम में गई. इमरान ने वसीम को साथ लिया और नेट्स में चले गए. लंच टाइम में वो यॉर्कर सिखाते रहे. लंच खत्म हुआ और वसीम अकरम ने यॉर्कर फेंकनी शुरू कर दी. हम सब जानते हैं कि आगे चलकर वसीम अकरम की इनस्विंगिंग यॉर्कर क्या कमाल करती थी.

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तमाम पहलू हैं इमरान की शख्सियत के
इमरान की पर्सनैलिटी के तमाम पहलू हैं
. महान क्रिकेटर, अद्भुत लीडरशिप, समाज के लिए काम करने वाला, प्लेबॉय, रेहम खान की किताब के हिसाब से देखा जाए तो तमाम अनैतिक काम करने वाले इंसान के तौर पर उनकी छवि उभरती है. खेल के दिनों में लंदन की नाइटलाइफ भी इमरान खान से बहुत अच्छी तरह परिचित थी. बाद में जरूर वो जैसे-जैसे राजनीति में गहरे उतरते गए, उन्होंने अलग इमेज बनाने की कोशिश की. इस्लामिक मान्यताओं के लिहाज से सार्वजनिक जीवन जीना इसमें अहम था. अपनी ताजा शादी भी उन्होंने क्रिकेट की इमेज से बिल्कुल अलग की. भले ही उनकी पार्टी चुनाव चिह्न के तौर पर क्रिकेट बैट का ही इस्तेमाल करती हो, लेकिन इमरान का जीवन क्रिकेट वाले जीवन से बिल्कुल अलग है. कम से कम सार्वजनिक तौर पर.

राजनीति और क्रिकेट दोनों में एक बात कॉमन है, वो है किसी भी भ्रष्टाचार से अलग रहना. वो हमेशा जीतने के लिए जी-जान से कोशिश करते दिखाई दिए. चाहे क्रिकेट मैदान हो या राजनीति का मैदान. जीतने के लिए उन्होंने जो भी जरूरी था, वो किया. लेकिन क्रिकेट या राजनीति के भ्रष्टाचार से उन्होंने दूरी बनाकर रखी. इस तरह की इमेज उनकी हमेशा रही कि वो जो भी कर रहे हैं, मुल्क के लिए कर रहे हैं. यही बात शायद उनके चाहने वालों को पसंद आती है.

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उन पर मिलिट्री के इस्तेमाल का आरोप लगता है. उससे करीबी का आरोप लगता है. मिलिटरी की मदद से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर निशाना साधने का आरोप लगता है. इसी वजह से तमाम जानकार मानते हैं कि इमरान के आने का मतलब मिलिटरी शासन जैसा होगा, क्योंकि वो कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं. हालांकि इन आरोपों के साथ यह भी सही है कि इमरान पर पैसे खाने जैसे आरोप नहीं लगते.

ऑक्सफोर्ड से इस्लाम तक इमरान का सफर65 साल के इमरान की जिंदगी धनी परिवार से शुरू होती है. पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड जैसी जगह जाने और दुनिया की तमाम खूबसूरत महिलाओं से अफेयर होने की चर्चाओं के बीच वो क्रिकेट के टॉप पर पहुंचते हैं. वो वर्ल्ड कप जीतते हैं. उसके बाद मां के नाम पर कैंसर अस्पताल बनवाते हैं. इसी के साथ वो उनकी सार्वजिनक जिंदगी इस्लाम की तरफ जाती नजर आती है. हालांकि वो जिंदगी, जो लोगों की नजर से दूर है, उसके बारे में तमाम अलग तरह के दावे किए जाते हैं.

इमरान 1996 में एक तरह से राजनीति में खुलकर आए. चुनाव लड़ा. बुरी तरह हारे. वहां से लेकर 2018 यानी 22 साल में उन्होंने अपने लिए दुनिया बदल दी है. उन्होंने हालात यहां तक पहुंचा दिए, जब हालात ‘कुछ नहीं’ से ‘सब कुछ’ तक पहुंच गए. यह भी उनकी लीडरशिप क्वालिटी का कमाल कहा जा सकता है. हालात परखने का कमाल भी.

हालात परखने को लेकर भारतीय क्रिकेटरों के दो किस्से जानना जरूरी है. संजय मांजरेकर की किताब में ही ये किस्से हैं. एक मांजरेकर के बारे में. मांजरेकर ने इमरान से अपनी उस बातचीत का जिक्र किया है, जब टीम ने न्यूजीलैंड से सीरीज खेली थी. इमरान ने मिलते ही पूछा था कि तुम रिचर्ड हैडली को बैकफुट पर क्यों खेल रहे थे? यह किस्सा बताता है कि कमजोरी या हालात को वो कैसे भांप लेते हैं.

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दूसरा किस्सा मनिंदर सिंह से जुड़ा है, जो बाएं हाथ के स्पिनर थे. मनिंदर में दुनिया का बेस्ट स्पिनर बनने की क्षमता थी. लेकिन वो भटक गए. उन्होंने तमाम प्रयोग करने शुरू कर दिया. इमरान उनसे मिले और पूछा– मन्नी, तुझे क्या हुआ? तूने अपनी बॉलिंग का क्या कर लिया? मनिंदर ने बताया कि कैसे उन्हें रन-अप छोटा करने के लिए कहा गया है. इमरान ने उन्हें सलाह दी कि अपने स्वाभाविक रन-अप से बॉलिंग करें, ‘एक स्टंप लगा और उस पर हजार बॉल डाल. अपने नॉर्मल रन-अप से बॉल कर. सब ठीक हो जाएगा.’ ये किस्से बताते हैं कि इमरान में छोटी-छोटी चीजें भांपने की क्षमता कितनी थी, जो उन्हें महान लीडर बनाता है.

भरोसा और लीडरशिप क्वालिटी में इमरान का जवाब नहींखुद पर भरोसा और लीडरशिप क्वालिटी के साथ अपने मुल्क को आगे रखने की बात ही थी, जिससे इमरान ने न्यूट्रल अंपायर से अंपायरिंग कराई थी. वह दौर था, जब खिजर हयात और शकूर राणा की अंपायरिंग कुख्यात थी. कहा जाता था कि पाकिस्तान में 11 नहीं, 13 खिलाड़ियों के खिलाफ खेलना है. इमरान उस दौर में न्यूट्रल अंपायर लाए थे. वो भी भारत के खिलाफ, जिसके खिलाफ हारना कोई पाकिस्तानी नहीं चाहता. यह उनका खुद पर भरोसा तो दिखाता ही है. साथ ही, यह भी दिखाता है कि दुनिया में वो अपनी टीम की कैसी इमेज पेश करना चाहते थे.

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यही वजह थीं, जिन्होंने इमरान को पूरी दुनिया में एक सम्मान दिलाया. उनके सम्मान को लेकर एक किस्सा पूर्व भारतीय क्रिकेटर ने सुनाया था. उन्होंने बताया, ‘दोनों टीमें एक-दूसरे को गालियां देती थीं. भारत में बच जाते थे सुनील गावस्कर. उनकी बड़ी इज्जत थी. पाकिस्तान से इमरान खान. उनको बोलने की हिम्मत नहीं होती थी.’

उन्होंने बताया कि कुछ ‘शैतान’ खिलाड़ियों ने तय किया कि श्रीकांत से गाली दिलवाई जाए. श्रीकांत नए आए थे. उन्हें हिंदी नहीं आती थी. कुछ खिलाड़ियों ने श्रीकांत को ठेठ पंजाबी गाली सिखाई और कहा कि इमरान को बोल दे. श्रीकांत ने गाली दे दी. इमरान ने श्रीकांत के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराकर अंग्रेजी में पूछा- किसने सिखाया है ये? यह किस्सा बड़ा सामान्य है. लेकिन इससे समझा आता है कि जब दोनों टीमों के खिलाड़ी किसी को नहीं बख्श रहे हों, उस समय इमरान को गाली देने की हिम्मत न जुटा पाना दरअसल, डर की वजह से नहीं, सम्मान की वजह से था. वो सम्मान इमरान ने खेल के मैदान पर हासिल किया है. राजनीतिक मैदान पर अभी पूरी दुनिया से वो सम्मान उन्हें हासिल करना है.
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