
अर्न्तमुख होने से हम उस दिव्य स्रोत से जुड़ जाते हैं जो समस्त ज्ञान का भण्डार है. ध्यान-अभ्यास द्वारा हम मृत्यु के द्वार को लांघकर, उस आनंद और सौंदर्य को पा लेते हैं जो हमारे भीतर हमारा इतंजार कर रहा है
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