
हाल ही में हाईकोर्ट ने बड़ी सख्ती के साथ कहा है कि 6 महीने में आवारा पशुओं के लिए शेल्टर बनाए जाएं. साथ ही इन आवारा पशुओं के लिए शहरी निकायों और निगमों को अधिकृत किया गया है. वहीं इसके लिए कोर्ट ने ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज विभाग की जिम्मेदार मानी है. कोर्ट का कहना है कि सड़क पर घूम रहे आवारा पशुओं को ठिकाना देने के लिए शेल्टर देना जुरूरी है, जहां उन्हें मुनासिब देख रेख मिल सके. बता दें कि उत्तराखंड राज्य बनने से पहले ग्रामीण इलाकों में 66 कांजी हाउस थे, वहीं अब पंचायत स्तर पर एक भी कांजी हाउस नहीं हैं. शहरी विकास विभाग जिसके ऊपर इस बात की जिम्मेदारी है कि वो गायों के संरक्षण का काम कर सके. निगम और निकाय स्तर पर एक मात्र कांजी हाउस देहरादून में है. इसकी क्षमता महज 50 गौवंश ही है, लेकिन यहां इस समय 90 के आसपास गौवंशीय पशु हैं जबकि देहरादून के नगर निगम कि गणना के अनुसार क्षेत्र में 22 हजार आवारा गौवंश हैं.
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